“नही रहना समाज के इन ढकोसलों में बंध कर, नही मानता ये मै ऐसे किसी कानून को जो इन्सान को इंसान से बाटते हो। तुम्हारे खोखली दलीलों से उकता गया हूँ। इस बंधन से मुक्त होना चाहता हूं, ये ऊंच नीच, ये आगे पीछे की दौड़, बड़ा छोटा इन सब मे उलझ गया हूँ। नहीं रहना ऐसे मुझे, और ये विद्रोह है तो हाँ हूँ मै विद्रोही। अगर ये पागलपन है इन्सेंन है तो मैं ऐसा ही हूँ। क्या चाहा था मैंने, क्या गलती थी मेरी, बस यही न कि मैं नही हूँ तुम्हारे जैसा, तुम सब के जैसा। नही होना मुझे, अवसर वादी, परमार्थ का ढोंग ओढ़े स्वार्थी, चतुर, नही होना मुझे सो कॉल्ड प्रेक्टिकल। मुझे रहने दो ऐसे ही नीरा निपट …अज्जड। क्या चाहा था मैंने सिर्फ प्रेम मेरे हिस्से का पूरा ….और अगर ये गुनाह है तो फिर में सजा का हकदार हूँ” कहते हुए अरमान ने खंजर अपनी ही छाती में घोप दिया और वही खून से लथपथ होकर स्टेज पर घिर पड़ा। दर्शकों की तालियों से पूरा हॉल गूंज रहा था।
आज अरमान के नाटक का 100वां शो था। “अंतर्मन” ये कहानी भी उसी की लिखी उसी ने निर्देशित की और वही मुख्य पात्र “भोंदू” का अभिनय भी कर रहा था।
“भोंदू” वास्तव में यह नाम काल्पनिक था या कहीं उसके अपने अनुभवों पर आधारित घटनाओं से प्रेरित होकर रचा गया उसका ही एक अक्स।
खेर, शो की सक्सेस ट्रीट में शाम को तरन्नुम ने अरमान को बधाई देते हुए व्हिस्की का ग्लास थमाया । आई एम तरन्नुम, एंड बिग फेन ऑफ योर्स।
बिना तरन्नुम की ओर देखे वो ग्लास को वही छोड़ वहाँ से चल दिया। तरन्नुम अचरज भरी निगाह से उसे देख रही थी और समझने की कोशिश में थी कि आखिर ऐसा क्यों? क्या वो सच मे भोंदू है? उसे तरन्नुम की बला की खूबसूरती भी नही दिखती।? इन बातों ने तरन्नुम को उसके प्रति और आकृष्ठ कर दिया था।
मेरिएट होटल के बेंकुएट से होते हुए बालकनी में आ पहुंचे अरमान के पास आ कर तरन्नुम ने पूछा “इसे क्या समझू में एक सुंदर लड़की की तौहीन या एक कलाकार का घमंड?”

“क्या फर्क पड़ता है? कि तुम या कोई भी कैसे समझे? यूँ नो सब बेमानी है । निरर्थक है । और क्या कहा तुमने ? भोंदू ….शायद सच यही है। 100 शो शायद अब मुझमे और भोंदू मैं कोई फर्क नही रहा। मैं वो और वो मैं हो चुके।” कहते हुए इस बार अरमान ने तरन्नुम के हाथ से ग्लास लेते हुए एक ही घूँट में उसे खाली कर दिया। ग्लास में बचे बर्फ के टुकड़ों की ठण्डक को अपने चहरे पर महसूस करता अरमान खाली आसमान की तरफ देख रहा था।
“जानती हो आज से पांच बरस पहले…. जब मैं शहर में इस आया था। हज़ारों ख्वाहिशें लेकर। तब मैं भी तुम्हारे जैसा था। ये बड़ी बड़ी बिल्डिंग, चकाचौंध, पार्टीस, बूज़। बड़ा कूल लगता था। I was fcuking crazy….About all these…
माँ और बाबा को छोड़ सब कुछ छोड़ कर बस निकल पड़ा। …..”
“I think you need one more…Shall I” कहते हुए तरन्नुम ने वेटर को इशारा कर एक और व्हिस्की अरमान के हाथ मे थमा दी।
So, इसमे उलझन क्या है? आज तुम एक सक्सेसफुल आर्टिस्ट्स हो, टाइम्स के कवरपेज पर आते हो।you acheived everything that you desired and deserved too. तरन्नुम ने कहा।
Success….कहते हुए अरमान ने एक ठहाका लगाया और कहा “yes I do have everything, look at this lavish party surrounded by all page 3 people, कार है, बंगला है, बैंक बैलेंस है, नेम है फेम है। yes I do have everything….But you know क्या नही है… मेरे माँ बाबूजी नही है, मेरे बचपन का प्यार पाखी नही है। I have lost them ……success …yes at cost of killing myself…..इसे पाने के लिए मुझे मेरे भोंदू का 100 बार कत्ल करना पड़ा । आज उसी सेंचुरी की पार्टी है, so let’s enjoy…” कह कर अरमान ने म्यूजिक लाउड करने का इशारा किया और आरती की बाहों में बांहे डाल कर झूमने लग गया। तरन्नुम वही कॉरिडोर से अरमान की कहानी अंतर्मन का वो हिस्सा देख रही थी जो उसने कभी स्टेज पर प्ले नही किया।