बातों को सही समय पर सही सलीके से रखने में प्रेरणा का कोई जवाब नही और ये बात उसके लोग क़रीबी जानते थे। अब चाहे कोई भी बात हो उसे कब, कैसे ,कहाँ, कितना कहना है गजब का कंट्रोल था उसमें। उसकी कुशल वाकपटुता और मोहित करने वाली छवी कुल मिला कर किसी भी राह चलते को अपने चुम्बकीय आकर्षण से अपनी और खिंच लेने में सक्षम थी।

और इससे उलट रोहन निपट झड़ , दिल से जो निकाला वो सीधा जुबान पर बिना फ़िल्टर के, बिना परिणाम की परवाह किये। उम्र में कोई बराबर ही रहा होगा, फिर भी ….वो कहते है ना “a man doesn’t live in years but deeds” तो बस जमाने भर के लोगो से मिल कर अच्छा बुरा देख चुके रोहन के लिए प्रेरणा के व्यक्तित्व का यह गुण दोधारि तलवार बन चुका था, जो जाने कब उस पर ही चल जाये और उससे भी बड़ी बात रोहन का प्रेरणा के प्रति प्रेम उसे अक्सर दोराहे पर ला कर खड़ा कर देता था । वो नही समझ पाता था कि वो वाकपटु सुंदरी कब तो अपने कौशल का उपयोग करते हुए उसे भ्रमित कर रही है या भ्रम से दूर।

और रोहन ….अक्सर इस स्थिति से निकलने या दोराहे मैं से एक को चुनने में भी प्रेरणा से ही मदद लेता। शायद पाठक ऊपर लिखी लाइन को दो बार पढ़ेंगे, ये ठीक वैसी ही है जैसी होनी चाहिए, इसमें त्रुटि नही है।

बहरहाल रोहन प्रेरणा से अटूट प्रेम जो करता है, उस पर भरोसे के अतिरिक्त कोई अन्य उपयुक्त आचरण भी उसे नही पता था। हांलाकि प्रेरणा और रोहन के बीच इस बात को लेकर इससे पहले कभी कोई स्पष्ट चर्चा नही हुई थी किन्तु शायद दोनों ही को ये पता था कि वो पतली रेखा जो भ्रम और सत्य के मध्य होती है वो कहीं उनके इस खूबसूरत रिश्ते में असमंजस का निर्माण करती रहती है।

बहरहाल कल ही की बात थी कि रोहन ने प्रेरणा को उसके इसी गुण के कुछ अवांछित प्रभावों से अवगत कराते हुए बात की थी, और अपने अंतर्द्वंद्व के बारे मे खुलकर कहा था। यहाँ तक कि स्पष्ट रूप से उसे कहा था कि कभी कभी ये कला कौशल किस तरह समस्या पैदा कर देती है। किन्तु…. प्रेरणा ने तब भी नपे तुले शब्दो मे वांछित बात करते हुए न केवल रोहन को आश्वस्त बल्कि इस विषय को किनारे भी कर दिया। प्रेरणा के पास दलील मजबूत थी कि “रोहन हम मुश्किल से एक दूसरे के लिए समय निकलते है, 24 घंटे में प्राथमिकता किसे देनी है ये तय करना चाहिए न कि ऐसी निरर्थक बातों में समय गवाना चाहिए।” हर बार की भांति रोहन ने फिर वही रास्ता चुन लिया जो अभी प्रेरणा ने उसे बताया।

और आज….. आज के दिन, रोहन ने शाम को मिलने की आस लिए प्रेरणा को कॉल किया “हेलो प्रेरणा, व्हाट्स उप क्या प्लान। प्रेरणा ने सौम्यता के साथ अभिवादन के साथ ही यह भी कह दिया कि थोड़ा व्यस्त है अभी बात नही कर पायेगी और हाँ आज मिलना नही हो पायेगा दीदी आ रही है शाम की फ्लाइट से, हमारी बात ही नही हो पाई। चल सी यूँ।

रोहन थोड़ा अटकते हुए बस यही कह पाया कि ना इट इस ok। सी यू sometime else…. फ़ोन तो कट गया था पर उसे रोहन के जेब तक जाते जाते कोई 4 से 5 मिनेट लगे थे। विचारों और अंतर्द्वंद्व के बोझ से अक्सर शरीर शिथिल हो जाता है और मन अशांत।